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Sunday 19 May 2013

अंधविश्वास, विज्ञान व हिंदु धर्म


(यह लेख मेरे एक मित्र श्री बाल कृष्ण करनाणी जी का लिखा हुआ है. वे भी एक ब्लॉगर हैं. श्री करनाणी जी के अनुरोध पर मैं इस लेख को अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूँ, हालाँकि इसकी हर बात से मेरा सहमत होना आवश्यक नहीं है.)


आजकल विज्ञान की हर बात पर आंख बंद कर विश्वास किया जाता है, हालांकि इसने हमें कुछ भौतिक सुविधाओं के अलावा केवल बीमारी व प्रदूषण ही दिया है। इसी प्रकार हमारे प्राचीन वैज्ञानिक (ऋषि-मुनि) कुछ कहते हैं, कम्पनियां (ब्राह्मण व ढोंगी साधु-संत) उसका अलग अर्थ निकाल कर लूट रहे हैं। विज्ञान की परमाणु शक्ति का दुरुपयोग बम आदि में किया जाता है। इस प्रकार विज्ञान कई वस्तुओं का मना करते हैं जैसे अलमुनियम के बर्तन, रिफाइंड तेल, आम नहाने के साबुन, फिर भी कम्पनियां बेचकर लूट मचा रही हैं। जब आधुनिक युग में थोड़े से समय मे इतना अंधविश्वास फैल गया, तो क्या भारत के लाखों साल पुराने समाज में विश्वास नहीं फैलेगा?

हिंदू धर्म के रीति-रिवाज, परम्पंराओं व कर्म-कांड का धर्म से कोई सम्बंध नहीं था। ये सब स्वास्थ्य के लिए थे, जिन्हें धर्म व दिनचर्या से जोड़ दिया गया और जनता को गहरा विश्वास हो गया। इसका उस समय कि कंम्पनियों (साधु व पंडित) ने विभिन्न प्रकार से फायदा उठाया। उसी लूट का फल है अंधविश्वास। आज इनके गुण न देख कर अंधविरोध होने लगा। मुझे कुछ परम्पराओं कि थोड़ी जानकारी है, लिख रहा हूँ।

तिलक से पता लगता है कि 24 घंटे जीवन है कि नहिं। अगर तिलक जो कुंकुंम (हल्दी, चूना व नीबू का बना) व चावल लगाने पर नहिं सूखता, तो समझो जीवन केवल 5-6 घंटे का रह गया है।

जनेऊ को मल-मूत्र करते समय कान पर लपेटने से गुर्दे व आँत के रोग काबू में रहते हैं। आज जनेऊ के बहाने ब्राह्मण भोज कर कुरीति चला रखी है।

सूर्य को अर्घ देने से नेत्र ज्योति बढ़ती है व क्षय रोग ठीक होता है। यह करने का सही समय वह है जब अंधविश्वास, विज्ञान व हिंदु धर्म सूर्य लाल रंग में हो व नाभि पर किरणें पड़नी चाहिए। यह केवल 15 मिनट का समय होता है, परन्तु लोग 12 बजे तक अर्घ देते हैं। ताँबे के बर्तन में पानी रात का हो। उसकी धार में से देखें व श्वास खींचें, इससे कापरआक्साईड मिलता है, जो क्षय रोग के स्ट्रेप्टोमाइसिन टीके का आधार है।

रजस्वला के समय पूर्ण विश्राम की आवश्यकता होती है। पहले बड़ों के सामने छोटे नहीं बैठते थे। फिर सास के सामने बहू का बैठना बिलकुल असंभव। इस समय विकृत किरणें निकलती हैं, जिसके कारण सामने वाले अपने को असहज महसूस करते हैं। कभी-कभी तो पौधों की पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। अब इसका पता कैसे लगे? हर जगह जानकार नहीं मिलते, तब अछूत का रास्ता निकाला गया। माहवारी से 7 दिन तक सहवास करने से होने वाली संतान अपंग व बीमार रहती है।

कर्ण छेदन को आजकल श्रृंगार में ले रखा है, जबकि इसे प्रथम माहवारी के समय ऊपर की तरफ से करते हैं, जो एक्युपंचर के नियम पर होना चाहिये। इससे गर्भाशय के रोग नियंत्रण में रहते हैं। गहने ऐक्युप्रैसर के नियम से बनते थे। अंगूठे के पास की अंगुली रक्त व प्रदर का नियंत्रण करती है। उसके पास वाली कम रक्त आता है तो चालु करती है। इसी प्रकार पाजेब पैर का दर्द रोकती है। सभी गहने शरीर के प्रमाप को देख कर उसी के अनुसार बनाये जाते थे। ज्यादा भारी होने पर शीशा आदि मिलाया जाता था।

अब आवश्यकता है कि योग की तरह ही अन्य भारतीय रीति-रिवाजों के रहस्य पता किये जायें।

-- बाल कृष्ण करनाणी

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