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Tuesday 24 January 2012

मुस्लिम तुष्टिकरण के जनक गाँधी

आज हम हर तरफ मुस्लिम तुष्टिकरण की जो होड़ देख रहे हैं उसकी शुरुआत भी मूर्खात्मा गाँधी ने की थी. उनका विचार था की मुसलमानों की बातों को मानकर और उनको विशेष सुविधाएँ देकर उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में साथ लाया जा सकेगा. उनकी यह नीति गलत नहीं थी, लेकिन इसका पालन बहुत मूर्खतापूर्ण ढंग से किया गया. सबसे पहले उन्होंने मुसलमानों के खिलाफत आन्दोलन को अपना और कांग्रेस पार्टी का समर्थन दे दिया, जबकि उस आन्दोलन से हमारे देश का और देश के मुसलमानों का कोई लेना -देना नहीं था. यह आन्दोलन तो कट्टरपंथी मुसलमानों ने तुर्की के खलीफा को फिर से गद्दी पर बैठने के लिए चलाया था, जिसको कमाल पाशा के नेतृत्व में वहां की बहुसंख्यक जनता  ने हटा दिया था.
जब यह आन्दोलन असफल हो गया, जो की होना ही था, तो मुसलमान और भी ज्यादा खिन्न हो गए और उन्होंने अपनी भड़ास दंगे करके निकाली. लेकिन गाँधी की आँखें तब भी नहीं खुलीं. इससे भी ज्यादा गलत और मूर्खतापूर्ण बात यह थी की गाँधी ने राष्ट्रवादी मुसलमानों के बजाय कट्टरपंथी मुसलमानों को महत्त्व दिया. उस समय जिन्ना राष्ट्रवादी थे, परन्तु गाँधी-नेहरु ने उनकी उपेक्षा की. इससे रुष्ट होकर वे भी कट्टरपंथी हो गए. और तब गाँधी-नेहरु दोनों उनको महत्त्व देने लगे. 
मुसलमानों को साथ लेने के लिए गाँधी उनकी अधिकांश मांगों को स्वीकार कर लेते थे, लेकिन फिर भी वे असंतुष्ट बने रहते थे और अगली बार नयी-नयी मांगे रख देते थे. यह प्रवृति आखिर तक बनी रही और वे देश के टुकड़े कराकर ही माने, बल्कि उसके बाद भी संतुष्ट नहीं हुए. इसकी तुलना में मुसलमानों ने हिन्दुओं की एक भी मांग नहीं मानी और न उनकी किसी धार्मिक भावना की कद्र की. उदाहरण के लिए, उन्होंने गोहत्या करना बंद नहीं किया और न वन्दे मातरम गाना स्वीकार किया. गाँधी यह समझने में असफल रहे कि मुसलमानों को संतुष्ट करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है. वे तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते, जब तक वे पूरी दुनिया को दारुल-इस्लाम न बना लें.
मुस्लिम मानसिकता को समझाने में गाँधी-नेहरु की असफलता की बड़ी कीमत देश ने चुकाई है और आजतक चुकाता जा रहा है. विशेष कानून से लेकर आरक्षण तक तमाम मांगे सामने आ रही हैं और मानी जा रही हैं. यह सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा और रुकेगा भी की नहीं, कोई नहीं जानता. संविधान में धर्म पर आधारित आरक्षण पर पूरी रोक के बाद भी सरकारें ऐसा आरक्षण दे रही हैं या देने का वायदा कर रही हैं. इस प्रवृति के जनक मूर्खात्मा गाँधी ही थे, जिसको उनके पट्ट-शिष्य पोंगा पंडित नेहरु ने आगे बढाया.

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