भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के आस-पास कई अन्य एशियाई देश भी स्वतंत्र हुए थे, जैसे वर्मा, श्रीलंका, इजरायल, अफगानिस्तान आदि, जहाँ न कोई गाँधी था और न कोई कांग्रेस। वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इंग्लैंड की आर्थिक और सामरिक स्थिति बुरी तरह चरमरा गयी थी और अंग्रेजों ने तत्कालीन विपरीत परिस्थितियों से बाध्य होकर संसार के सभी देशों से अपने हाथ खींच लिये थे। दूसरा कारण यह भी था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुए ब्रिटेन के आम चुनावों में चर्चिल की कट्टरवादी कंजरवेटिव पार्टी हार गयी थी और उदारवादी लेबर पार्टी सत्ता में आयी थी, जिसके प्रधानमंत्री जार्ज एटली ने ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों को स्वतंत्र करने का सैद्धांतिक फैसला कर लिया था। इसलिए वे शीघ्र से शीघ्र भारत छोड़कर जाने का निश्चय कर चुके थे।
लेकिन यह कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि भारत का समस्त स्वतंत्रता संग्राम निरर्थक था और इनका कोई असर नहीं हुआ था। निश्चय ही कांग्रेस के आन्दोलनों के कारण देश में जागरूकता का वातावरण बना था और इसी कारण उन परिस्थितियों का निर्माण हुआ था जिनसे बाध्य होकर अंग्रेजों को चले जाना पड़ा। लेकिन जो तात्कालिक घटना इसका प्रमुख कारण बनी, वह थी सन् 1946 में भारत के नौसैनिकों का विद्रोह। यह एक बिडम्बना ही है कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को पढ़ाते समय इस प्रमुख घटना को पूरी तरह उपेक्षित कर दिया जाता है और आजादी दिलवाने का सारा श्रेय एक विशेष पार्टी और उसमें भी एक विशेष परिवार को दे दिया जाता है। भले ही यह नौसैनिक विद्रोह तात्कालिक दृष्टि से असफल रहा, लेकिन इसने अंग्रेजों के मन में यह बात बैठा दी कि जिन भारतीय सेनाओं के बल पर उनका साम्राज्य टिका हुआ है, वे सेनाएँ कभी भी उनका साथ छोड़ सकती हैं और फिर उनको अपना अस्तित्व तक बचाना कठिन हो जाएगा। 1857 के ”सिपाही विद्रोह“ का कटु अनुभव वे भूले नहीं थे। इसी कारण वे शीघ्र से शीघ्र भारत छोड़कर जाना चाहते थे। इस कार्य में सौदेबाजी के लिए उन्हें कांग्रेस-मुस्लिम लीग जैसी पार्टियाँ तथा उनके सत्तालोलुप नेता भी मिल गये और वे देश के टुकड़े करके भाग खड़े हुए।
यह इतिहास की बिडम्बना ही कही जायेगी कि जिस नौसैनिक विद्रोह ने अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाने के लिए सबसे अधिक मजबूर किया, उसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में आज भी उचित स्थान नहीं मिल पाया है। इसके बजाय सारा श्रेय सुविधायें भोगने वाले और सौदेबाजी करने वाले नेताओं ने लूट लिया।
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